कब है शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी, जानें कैसा है माता का स्वरूप
- Sheetala Saptami and Sheetala ashtami:हर साल चैत्र मास की सप्तमी तिथि और अष्टमी तिथि को शीतला सप्तामी व्रत और शीतलाष्टमी व्रत किया जाता है। अलग-अलग जगह अलग दिन इस व्रत को करने की परंपरा रही है।

हर साल चैत्र मास की सप्तमी तिथि और अष्टमी तिथि को शीतला सप्तामी व्रत और शीतलाष्टमी व्रत किया जाता है। अलग-अलग जगह अलग दिन इस व्रत को करने की परंपरा रही है। दरअसल होली जिस दिन जलती है, अगले सप्ताह ठीक उसी दिन यह व्रत किया जाता है। कई जगह होलिका दहन के बाद पड़ने वाले सोमवार को शीतला माता की पूजा हो जाती है और कई जगह शीतला सप्तमी और अष्टमी को शीतला माता की पूजा की जाती है। इस साल की बात करें तो इस साल शीतला सप्तमी व्रत 21 और 22 मार्च को मनाया जाएगा। कई जगह यह बुधवार और शुक्रवार को मनाया जाएगा।
इसी तरह शीतला माता की पूजा करने के साथ ही दिनभर व्रत कियाजाता है। ऐसा कहा जाता है कि ठंडा भोजन कियाजाता है। आज के दिन से खानी बासी होने लगता है, इसलिए बसौड़ा, बसोइरा कहा जाता है।
क्या बनता है भोग और कैसे होती है पूजा
चैत्र माह के कृष्णपक्ष की सप्तमी या अष्टमी तिथि से एक दिन पहले ही खाना बनाकर रख लिया जाता है। खासकर रात को खाना बनाते हैं, जिससे सुबह तक खाना खाया जा सके। इसलिए इसे बसौड़ा कहते हैं, क्योंकि इसमें दिन के एक पहर तक बासी भोजन किया जाता है? खासतौर से चावल और दही मिलाकर भोग बनाया जाता है। कईलोगों के भीगी चने की दाल का भोग लगाया जाता है। इसके साथ ही पूरे दिन भोजन नहीं बनाते और गर्म खाना भी नहीं खाते हैं।
सप्तमी तिथि का प्रारंभ – 21 मार्च दिन शुक्रवार, सुबह 2 बजकर 45 मिनट से
सप्तमी तिथि का समापन – 22 मार्च दिन शुक्रवार, सुबह 4 बजकर 23 मिनट तक, इसके बाद अष्टमी लग जाएगी।
उदया तिथि को मानते हुए शीतला सप्तमी या बसौड़ा का पर्व 21 मार्च दिन शुक्रवार को किया जाएगा.
कैसा है माता का स्वरूप
शीतला माता के हाथ में झाड़ू और कलश। माता की पूजा बीमारी से बचाव के लिए की जाती है। शीतला माता बीमारियों से बचने का संदेश भी देती हैं। देवी के एक हाथ में झाड़ू है जो घर और आसपास के क्षेत्र की साफ-सफाई का संदेश देती है। वहीं दूसरे हाथ में कलश है, जिसमें रोगाणु नाशक जल हाथ धोने का प्रतीक है।इसलिए शीतला माता के व्रत के दौरान भोजन नहीं बनाया जाता एवं किचन में सफाई और पूजा की जाती है।
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