शरद पूर्णिमा का होता है विशेष महत्व, नोट कर लें संपूर्ण पूजा-विधि
- हिंदू पंचाग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस साल शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को मनाई जा रही है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह महत्वपूर्ण तिथि है।
हिंदू पंचाग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस साल शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को मनाई जा रही है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह महत्वपूर्ण तिथि है। पूरे साल में से सिर्फ शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन आसमान से अमृत वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की पूजने की परंपरा चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन से सर्दियों की शुरुआत हो जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन चंद्रमा धरती के सबसे करीब होता है। चंद्रमा की दूधिया रोशनी धरती को नहलाती है। इन दूधिया रोशनी के बीच पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है।
शरद पूर्णिमा का महत्व:
पौराणिक मान्यताओं अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं। अपने भक्तों पर धन की देवी कृपा बरसाती हैं। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की चांदनी से पूरी धरती सराबोर रहती है और अमृत की बरसात होती है। इन्हीं मान्यताओं के आधार पर ऐसी परंपरा बनाई गई है कि रात को चंद्रमा की चांदनी में खीर रखने से उसमें अमृत समा जाता है।
शरद पूर्णिमा पूजा-विधि:
शरद पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है। यदि ऐसा नहीं कर सकते हैं तो घर में पानी में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं और इस स्थान को गंगाजल से पवित्र कर लें। इस चौकी पर अब मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें और लाल चुनरी पहनाएं। इसके साथ ही धूप, दीप, नैवेद्य और सुपारी आदि अर्पित करें। मां लक्ष्मी की पूजा करते हुए ध्यान करते हुए लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। शाम को भगवान विष्णु की पूजा करें और तुलसी पौधा के पास घी का दीपक जलाएं।
इसके साथ ही, चंद्रमा को अर्घ्य दें। चावल और गाय के दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखें। कुछ घंटों के लिए खीर रखने के बाद उसका भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में पूरे परिवार को खिलाएं। पं. पुरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि नारद पुराण के अनुसार ऐसा माना गया है कि इस दिन लक्ष्मी मां अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। इस दिन मां लक्ष्मी अपने जागते हुए भक्तों को धन और वैभव का आशीष देती हैं। शाम होने पर सोने, चांदी या मिट्टी के दीपक से आरती की जाती है। रातभर महालक्ष्मी का ध्यान और पूजा-अर्चना करने वाले भक्त को लक्ष्मी जी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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