सावन का पहला शनिवार आज, मकर, कुंभ, मीन वाले कर लें ये खास उपाय, शनिदेव का अशुभ प्रभाव होगा कम
- हर कोई शनि के अशुभ प्रभावों से भयभीत रहता है। शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए भगवान शंकर की अराधना करनी चाहिए। इस समय सावन का महीना चल रहा है। भगवान शंकर की कृपा से शनि दोषों से मुक्ति मिल जाती है और जीवन आनंद से भर जाता है।
हर कोई शनि के अशुभ प्रभावों से भयभीत रहता है। शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए भगवान शंकर की अराधना करनी चाहिए। इस समय सावन का महीना चल रहा है। भगवान शंकर की कृपा से शनि दोषों से मुक्ति मिल जाती है और जीवन आनंद से भर जाता है। सावन के महीने पर विधि-विधान से भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से सभी तरह के दोषों से मुक्ति हो जाती है। शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है। इस समय मकर, कुंभ और मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और कर्क, वृश्चिक राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगने पर व्यक्ति का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो जाता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से पीड़ित लोग सावन के आखिरी शनिवार पर जरूर करें ये उपाय....
शिवलिंग पर सफेद वस्त्र और जनेऊ अर्पित करें
भगवान शंकर की कृपा प्राप्त करने के लिए शिवलिंग पर जनेऊ ओर सफेद वस्त्र अर्पित करें।
भगवान शंकर की आरती करें
भगवान शंकर की आरती अवश्य करें। भगवान की आरती करने से शुभ फल की प्राप्त होती है।
शिवलिंग पर जल या गंगा जल अर्पित करें
शिवलिंग पर जल या गंगा जल अर्पित करें। शिवलिंग पर जल या गंगा जल अर्पित करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। शिवलिंग पर जल या गंगा जल अर्पित करने से शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। हिंदू धर्म में गंगा जल को पवित्र माना जाता है।
शिवलिंग पर दूध, दही अर्पित करें
शिवलिंग पर दूध, दही अर्पित करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। शिवलिंग पर दूध, दही अर्पित करने के बाद शिवलिंग का जल या गंगा जल से अभिषेक जरूर करें।
शिवजी की आरती-
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
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