विजयदशमी के दिन खुलते हैं इस मंदिर के कपाट, रावण की होती है पूजा
- कानपुर के शिवाला में रावण का मंदिर है। यहां पर दशहरा के दिन सुबह से भक्त रावण की पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। यहां पूजा केवल दशहरे के दिन ही हाेती है। रावण के इस मंदिर में दशहरा के दिन रावण की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है।
कानपुर के शिवाला में रावण का मंदिर है। यहां पर दशहरा के दिन सुबह से भक्त रावण की पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। यहां पूजा केवल दशहरे के दिन ही हाेती है। रावण के इस मंदिर में दशहरा के दिन रावण की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। बाकी दिन इस मंदिर के कपाट बंद ही रहते हैं। यह मंदिर साल में एक बार विजयादशमी के दिन ही खुलता है। इस मंदिर में शक्ति के प्रतीक के रूप में रावण की पूजा होती है। परंपरा के अनुसार सुबह आठ बजे मंदिर के कपाट खोले दिए जाते हैं और रावण की प्रतिमा का साज श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद आरती की जाती है। शाम को मंदिर के दरवाजे एक साल के लिए फिर बंद कर दिए जाते हैं। मान्यता है कि यहां रावण काे तेल और पीले फूल चढ़ाने से ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है और घर में खुशियां आ जाती हैं। रावण के इस मंदिर में विजयदशमी के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर के अलावा भी बहुत से स्थान ऐसे हैं जहां पर विजयदशमी के दिन रावण की पूजा होती है। आइए जानते हैं, किन स्थानों पर होती है रावण की पूजा-
कांगड़ा, हिमाचल में होती है रावण की पूजा-
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में रावण का दहन नहीं किया जाता है। वहां के लोगों का मानना हैं कि रावण ने भगवान शंकर को बैजनाथ कांगड़ा में ही अपनी कठिन तपस्या से प्रसन्न किया था और तब से लेकर अब तक वहां के लोग रावण को शिव का परम भक्त मानकर ,उसकी पूजा करते हैं।
जोधपुर में होती है रावण की पूजा-
जोधपुर के मौदगिल में रावण को ब्राह्मण समाज का वंशज माना जाता है। इसी वजह से वहां के लोग रावण का दहन करने की बजाय उसकी पूजा कर उसकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान भी करते हैं।
बिसरख, उत्तर प्रदेश में होती है रावण की पूजा-
उत्तर प्रदेश के बिसरख में रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि वहां रावण और रावण के पिता ऋषि विश्वा की पूजा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रावण का जन्म उत्तर प्रदेश के बिसरख में हुआ था। उस जगह का नाम ऋषि विश्वा के नाम पर ही इसी विश्वा के नाम पर बिसरख पड़ा।
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