ईश्वर को जानने से पहले उसे प्रेम करें
- हम सभी की यह स्वाभाविक इच्छा होती है कि हम ईश्वर को जानें। इसके लिए हम तमाम प्रयत्न भी करते हैं। ध्यान-तपस्या से लेकर योग साधना तक, जो भी हमारे सामर्थ्य में होता है। लेकिन इन सबमें हम एक अहम बात भूल जाते हैं कि हमें ईश्वर को जानने से पहले उसे प्रेम करना आना चाहिए।
हम सभी की यह स्वाभाविक इच्छा होती है कि हम ईश्वर को जानें। इसके लिए हम तमाम प्रयत्न भी करते हैं। ध्यान-तपस्या से लेकर योग साधना तक, जो भी हमारे सामर्थ्य में होता है। लेकिन इन सबमें हम एक अहम बात भूल जाते हैं कि हमें ईश्वर को जानने से पहले उसे प्रेम करना आना चाहिए।
ईश्वर की उपस्थिति का अभ्यास करें। एक छोटी-सी प्रार्थना करके अथवा थोड़ा-सा प्रकाश देखकर संतुष्ट होकर सोने के लिए न चले जाएं। निद्रा नशे में जाने की दवाई है। यदि आप भली प्रकार से इच्छाओं को नियंत्रित कर सकें; और यदि आप पूर्णरूप से सभी इंद्रियों को नियंत्रित कर सकें; और यदि आप अपनी आत्मा की पूर्ण शक्ति से ईश्वर को खोजें, तब वह आपके समक्ष प्रकट हो जाएंगे। यद्यपि आप उच्च सदाचारी हों और एक आध्यात्मिक व्यक्ति हों, तो भी ईश्वर के बोध के बिना आपके पास कुछ नहीं है।
इसलिए स्वयं को धोखा न दें। अधिक ध्यान करें—अनवरत रूप से और ईमानदारी से। ईश्वर से कहें, ‘मैं अपनी कमजोरियों को जानता हूं। लेकिन प्रभु वे सब आपकी हैं, क्योंकि आपने ही मुझे बनाया है। आपके सान्निध्य में रहने के अतिरिक्त मेरी और कोई इच्छा नहीं है, क्योंकि आप ही इस संसार रूपी चलचित्र को दिखा रहे हैं। आप इसके सुखांत और दुखांत दोनों पहलुओं से मुक्त हैं। इसलिए मैं भी मुक्त हूं, क्योंकि मैं आपका बच्चा हूं।’
स्वयं को पापी न कहें; और न स्वयं को धर्मात्मा कहकर गर्व करें। अपितु, कहें कि ईश्वर आपके साथ हैं, और केवल वे ही, न कि कोई और! आपके द्वारा कार्य कर रहे हैं। तब आप एक भिन्न जगत को देखेंगे। ईश्वर की चेतना के बिना यह संसार संघर्षों से, हिंसा से और घोर निराशाओं से भरा प्रतीत होता है। परंतु प्रभु के साथ तो यह आनंद का स्वर्ग है।
ईश्वर किसी व्यक्ति, जो इस संसार से जा चुका है, के शरीर को एक ही क्षण में दोबारा बना सकते हैं; वे चाहते हैं कि हम इसे जानें। वे आपको समझाना चाहते हैं कि यह सृष्टि एक तमाशा है। यदि आप इस तमाशे को गंभीरता से लेंगे, तो आप दुखी हो जाएंगे, और आप इसे पसंद नहीं करेंगे; आप जीवन को इसके दुख एवं रोग और पीड़ा के साथ सहन नहीं कर पाएंगे। जब कोई वस्तु शरीर को पीड़ा पहुंचाती है, तो मैं अपने मन को भ्रूमध्य पर, आध्यात्मिक चेतना के स्थान पर, लगा देता हूं; तब मुझे किसी भी पीड़ा का अनुभव नहीं होता। परंतु जब मैं पीड़ा पर केंद्रित होता हूं, तो मैं पीड़ा के भ्रम को अनुभव करता हूं। आपके मानसिक पर्दे पर दुखों की भ्रामक माया की छाया के प्रदर्शन के समय यदि आप अपने मन को अपनी आत्मा की आध्यात्मिक चेतना में केंद्रित कर सकें तो आप पीड़ित नहीं होंगे। ईश्वर से अनवरत रूप से प्रार्थना करते रहें कि वे अनन्य आनंदमयी सत्ता के रूप में प्रकट हों।
आपने इतना अधिक समय पहले ही नष्ट कर दिया है— किसी भी क्षण मृत्यु आपको ले जा सकती है, और तब प्रभु को जानने के लिए आपके पास समय नहीं बचेगा। शरीर रूपी पिंजरे से बाहर जाने से पहले ही आपको प्रभु की अनुभूति कर लेनी चाहिए। उनसे कहें, ‘मैं आपकी उपस्थिति को अनुभव करना चाहता हूं।’ परंतु वे आपको माया के इस चिकित्सालय से स्थायी रूप से तब तक बाहर नहीं जाने देंगे, जब तक आप अपनी इच्छाओं रूपी रोग का उपचार नहीं कर लेते। प्रत्येक कार्य ईश्वर के लिए करें। प्रभु के लिए कार्य करना आपकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि ध्यान करना।
रात्रि में ईश्वर का ध्यान करें, जब तक कि आप उनमें आनंदित न हो जाएं और उनके आनंद में मग्न न हो जाएं। तब आप हर समय ईश्वर के साथ होंगे। आप सदा मुस्करा सकेंगे और यह कह सकेंगे, ‘थोड़ा-सा दुख अथवा थोड़ा-सा सुख या थोड़ी-सी शांति, मेरी आत्मा में भरे नित्य-नवीन आनंद के उस सागर में हलचल नहीं मचा सकते, जो मेरी आत्मा को परिपूर्ण किए हुए है।’
हृदय में ईश्वर को धारण करके जीएं और संसार में भयभीत न हों— भय आपसे भयभीत हो जाएगा! आप इस ब्रह्मांडीय माया से मुक्त हो जाएंगे। तब आप मुस्कराएंगे, ‘अंतत मैं इसके सभी रहस्यों को जान ही गया।’ लेकिन पहले जानने का प्रयास न करें; पहले ईश्वर से प्रेम करें। तब वे आपको सब कुछ बता देंगे। और तब आप शाश्वत मुस्कान से मुस्करा सकेंगे। आपके विचार, आपके शब्द, आपके लेख और आपके द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य उस मुस्कान में देदीप्यमान आनंद से व्याप्त होगा। आप जहां भी ध्यान करेंगे, वहीं आप मुस्कान की एक सुगंध छोड़ देंगे, और जो कोई भी वहां आएगा, वह भी ईश्वर में मुस्कराने के लिए प्रेरित होगा। जब आप ईश्वर के अवर्णनीय आनंद में मग्न रहेंगे तो आप हर समय मुस्करा सकेंगे।
रात्रि में ईश्वर का ध्यान करें, जब तक कि आप उनमें आनंदित न हो जाएं और उनके आनंद में मग्न न हो जाएं। तब आप हर समय ईश्वर के साथ होंगे। आप सदा मुस्करा सकेंगे और यह कह सकेंगे, ‘मेरी आत्मा परिपूर्ण हो चुकी है।’- श्री श्री परमहंस योगानंद
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