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परमात्मा से मिले प्रकाश को लोगों में बांट दिया

  • परमात्मा के रास्ते पर नानक के लिए गीत और फूल ही बिछे हैं। उन्होंने जो भी कहा है, गा कर कहा है। बहुत मधुर है उनका मार्ग; रससिक्त! ये गीत साधारण गायक के नहीं हैं। ये गीत उसके हैं, जिसने जाना है। इन गीतों में सत्य की भनक है, परमात्मा का प्रतिबिंब है।

Arti Tripathi लाइव हिन्दुस्तान, ओशोTue, 12 Nov 2024 08:51 AM
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नानक ने परमात्मा को गा-गा कर पाया। गीतों से पटा है नानक का मार्ग। इसलिए नानक की खोज बड़ी भिन्न है। पहली बात समझ लेनी जरूरी है कि नानक ने योग नहीं किया, तप नहीं किया, ध्यान नहीं किया। नानक ने सिर्फ गाया और गा कर ही पा लिया। लेकिन गाया उन्होंने इतने पूरे प्राण से कि गीत ही ध्यान हो गया, गीत ही योग बन गया, गीत ही तप हो गया।

परमात्मा के रास्ते पर नानक के लिए गीत और फूल ही बिछे हैं। इसलिए उन्होंने जो भी कहा है, गा कर कहा है। बहुत मधुर है उनका मार्ग; रससक्ति! कल हम कबीर की बात कर रहे थे— ‘सुरत कलारी भई मतवारी, मधवा पी गई बिन तौले।’

नानक वही हैं, जो मधवा को बिना तौले पी गए हैं। फिर जीवनभर गाते रहे। ये गीत साधारण गायक के नहीं हैं। ये गीत उसके हैं, जिसने जाना है। इन गीतों में सत्य की भनक है, इन गीतों में परमात्मा का प्रतिबिंब है।

दूसरी बात, जपुजी के जन्म के संबंध में। जिस भादों की रात की मैंने बात कही, तब नानक की उम्र रही होगी कोई सोलह-सत्रह। जपुजी का जन्म हुआ तब उनकी उम्र थी, छत्तीस वर्ष, छह माह, पंद्रह दिन। जिस घटना का मैंने उल्लेख किया, उस भादों की रात वे साधक थे और तलाश में थे। प्यारे की पुकार चल रही थी, पियू-पियू। अभी पपीहा रट लगा रहा था। अभी मिलन न हुआ था।

जपुजी का जब जन्म हुआ- यह मिलन के बाद उनका पहला उद्घोष है। पपीहा ने पा लिया अपने प्यारे को। पियू-पियू की रटन पूरी हुई। मिलन हो गया। उस मिलन से जो पहला उद्घोष हुआ है, वह जपुजी है। इसलिए नानक की वाणी में जो मूल्य जपुजी का है वह किसी और बात का नहीं। जपुजी ताजी से ताजी खबर है उस लोक की। वहां से लौट कर उन्होंने जो पहली बात कही, वह यही है। उस जगत से इस जगत में आ कर, जो पहले शब्द निर्मित हुए वही जपुजी है।

नदी के किनारे रात के अंधेरे में, अपने साथी और सेवक मरदाना के साथ वे नदी तट पर बैठे थे। अचानक उन्होंने वस्त्र उतार दिए। बिना कुछ कहे वे नदी में उतर गए। मरदाना पूछता भी रहा, क्या करते हैं? रात ठंडी है, अंधेरी है! दूर नदी में वे चले गए। मरदाना पीछे-पीछे गया। नानक ने डुबकी लगाई। मरदाना सोचता था कि क्षण-दो क्षण में बाहर आ जाएंगे। फिर वे बाहर नहीं आए।

दस-पांच मिनट तो मरदाना ने राह देखी, फिर वह खोजने लग गया कि वे कहां खो गए। फिर वह चिल्लाने लगा। फिर वह किनारे-किनारे दौड़ने लगा कि कहां हो? बोलो, आवाज दो! ऐसा उसे लगा कि नदी की लहर-लहर से एक आवाज आने लगी, धीरज रखो, धीरज रखो। पर नानक की कोई खबर नहीं। वह भागा गांव गया, आधी रात लोगों को जगा दिया। भीड़ इकट्ठी हो गई।

नानक को सभी लोग प्यार करते थे। सभी को नानक में दिखाई पड़ती थी कुछ होने की संभावना। नानक की मौजूदगी में सभी को सुगंध प्रतीत होती थी। फूल अभी खिला नहीं था, पर कली भी तो गंध देती है! सारा गांव रोने लगा, भीड़ इकट्ठी हो गई। सारी नदी तलाश डाली। इस कोने से उस कोने लोग भागने-दौड़ने लगे। लेकिन कोई पता न चला। तीन दिन बीत गए। लोगों ने मान ही लिया कि नानक को कोई जानवर खा गया। डूब गए, बह गए, किसी खाई-खड्ड में उलझ गए। और तीसरे दिन रात अचानक नानक नदी से प्रकट हो गए। जब वे नदी से प्रकट हुए तो जपुजी उनका पहला वचन है। यह घोषणा उन्होंने की। कहानी ऐसी है- कहता हूं। कहानी का मतलब होता है, जो सच भी है, और सच नहीं भी। सच इसलिए है कि वह खबर देती है सचाई की; और सच इसलिए नहीं है कि वह कहानी है और प्रतीकों में खबर देती है। और जितनी गहरी बात कहनी हो, उतनी ही प्रतीकों की खोज करनी पड़ती है।

नानक जब तीन दिन के लिए खो गए नदी में तो कहानी है कि वे प्रकट हुए परमात्मा के द्वार में। ईश्वर का उन्हें अनुभव हुआ। जाना आंखों के सामने प्यारे को, जिसके लिए पुकारते थे। जिसके लिए गीत गाते थे, जो उनके हृदय की धड़कन-धड़कन में प्यास बना था। उसे सामने पाया। तृप्त हुए। और परमात्मा ने उन्हें कहा, अब तू जा। और जो मैंने तुझे दिया है, वह लोगों को बांट। जपुजी उनकी पहली भेंट है- परमात्मा से लौट कर।

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