Hindi Newsधर्म न्यूज़Lord Mahavira swami nirvana day special spritual thoughts

ये माटी का दीप जले, दूर करे अंधियारा

  • Lord Mahavira swami nirvana day :पूरी सृष्टि ही माटी का दीया है। इस सूने दीपक में लौ का जागरण हमें करना है। निर्जीव ऊर्जा में जीवंतता भरनी है। तभी तो होगी ब्रह्मांड की दीवाली।

Arti Tripathi लाइव हिन्दुस्तानTue, 29 Oct 2024 08:18 AM
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पूरी सृष्टि ही माटी का दीया है। इस सूने दीपक में लौ का जागरण हमें करना है। निर्जीव ऊर्जा में जीवंतता भरनी है। तभी तो होगी ब्रह्मांड की दीवाली। कैसे इस जीवन ऊर्जा को भरा जाए? उत्तर मिलेगा वेदांत और महावीर से। वेदांत ने कहा जगत में ब्रह्म का आधान करो। ब्रह्मांड जगमग हो जाएगा। महावीर ने कहा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तत्त्वों को जीवंत मानो। इनकी रक्षा करो, सारा संसार ज्योतिर्मय हो जाएगा।

हमारा शरीर माटी का दीया है। इसमें आलस्य का तमस छाया हुआ है। तपस्या और सेवा की बाती डालकर इसमें श्रम की ज्योति जल जाए तो ये शरीर ही दीवाली बन जाए।

हृदय के गहन गुहर भी ईर्ष्या-प्रतिस्पर्धा के अंधकार से आच्छन्न हैं। महावीर कहते हैं कि दिल को संवेदनशीलता तथा मैत्री भाव के दिव्य आलोक से पूर्ण करो। रात और दिन हृदय जगमगाता रहेगा।

बुद्धि का महद् आकाश अहंभाव के तमस से घिरा है। कहां से लाएं प्रकाश का आश्वासन? समाधान है, श्रुतज्ञान की सहस्र रश्मियों की भव्य किरणों को बुद्धिपट पर गिरने दो। अंधकार विलीन होगा। हृदय नभ आलोकित होगा।

प्राण भी मृण्मय हैं, पार्थिव तत्व है। अत: अंधकारमय है। इन्हें तेजस बनाने का उपाय है, गहन भक्ति। ‘सांसों की माला पे जप लूं मैं तेरा नाम।’ हर आता-जाता श्वास सुवासित और तेजोमय बन जाएगा ।

हमारी इंद्रियां भी माटी से निर्मित हैं। पुद्गलग्राही हैं। इन्हें भी तो ज्ञानमय दीप्ति से प्रदीप्त करना है। विकारों का भीषण तम इन्होंने एकत्र कर लिया है। अब संस्कारों की उज्ज्वल दीपशिखाओं से इन्हें प्रभापुंज बनाना है।

सारा दृश्य जगत मिट्टी या अंधकार का प्रतीक है। समग्र आध्यात्म चेतना तेज एवं प्रकाश की सूचक है। इसे द्रव्योद्योत और भावोद्योत कहा जाए तो उपयुक्त रहेगा। यह पर्व पहले दीपकों की पंक्तियां दिखाएगा। फिर हमारे जीवन लक्ष्यों को भाव प्रकाश से भरपूर करेगा। आओ, संकल्पबद्ध होकर अंतर्दीपों को प्रज्ज्वलित करें।

सृष्टि माटी है, दृष्टि ज्योति है।

शरीर मिट्टी का है, सेवा तपस्या तेज है।

हृदय मिट्टी का है, संवेदना मैत्री ज्योति है।

बुद्धि मिट्टी है, ज्ञान आलोक है।

प्राण मिट्टी है, प्रभु भक्ति प्रकाश है।

इंद्रियां मिट्टी है, सुसंस्कार दीप्त किरणें हैं।

दृश्य जगत मिट्टी है, अध्यात्म भाव वास्तविक उद्योत है।

यह दीप पर्व है। निर्वाण पर्व है। लौकिक तथा अलौकिक कल्याण पर्व है। कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात जब महावीर का निर्वाण हुआ था, तब वहां मौजूद सभा ने कहा, ‘गओ भावुज्जोओ।’ आत्मा की ज्योति लुप्त हो गई। लेकिन, निराशा को आशा में बदलते हुए, महावीर के भाव प्रकाश को शाश्वत रूप से स्मृतियों में पुनर्जीवित करने के लिए आध्यात्मिक प्रकाश के प्रतीक के रूप में मिट्टी के दीये जलाए गए। महावीर तो प्रकाश पुरुष थे। हमें भी सर्वत्र प्रकाश बढ़ाना है। बाहर का ही नहीं, भीतर का भी। इसलिए इस दीपावली अपने भीतर का दीपक भी जरूर जलाएं।

बहुश्रुत जय मुनि

(लेखक संघशास्ता सुदर्शनलालजी के शिष्य हैं)

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