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यहां पढ़ें कृष्णपिंगला संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा

  • Krishnapingala sankashti chaturthi: चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेश की उपासना के लिए खास मानी गई है। कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा-

Saumya Tiwari नई दिल्ली, एजेंसी/लाइव हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीTue, 25 June 2024 09:13 AM
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चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेश को समर्पित है। आज 25 जून 2024, मंगलवार को आषाढ़ मास की पहली चतुर्थी है। इसे कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। मंगलवार और चतुर्थी तिथि का योग होने से अंगारक चतुर्थी का योग बन रहा है। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्रीगणेश की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। शाम के समय पूजा के साथ ही व्रत कथा पढ़ी या सुनी जाती है। आप भी पढ़ें अंगारकी चतुर्थी की कथा-

एक समय की बात है कि भारद्वाज महर्षि की सलाह पर पार्वतीमालिनी ने सात वर्षों तक सूर्य देव के पुत्र सवन का पालन-पोषण किया। कुछ समय बाद जब वह महर्षि के पास लड़के को लेकर पहुंची तो उन्होंने उसे उनका पुत्र बताया। यह जानकर महर्षि खुश हुए हुए और उसे अपना मानकर लड़के को वेद और अन्य शास्त्रों का ज्ञान दिया। इतना ही नहीं उन्होंने लड़के को गणपति मंत्र की दीक्षा दी और उसे भगवान गणेश की उपासना करने करने की बात कही।

लड़का गंगा किनारे जाकर भगवान गणेश का ध्यान करने बैठ गया और करीब एक हजार वर्षों तक बिना भोजन पानी के भगवान गणेश जी के मंत्र जप करता रहा। माघ कृष्ण चतुर्थी को जब चंद्रमा उगा तब भगवान गणेश ने अपने आठ हाथ वाले रूप में , कई अस्त्रों से सजे हुए और हजारों सूर्यों से ज्यादा चमकते हुए उस लड़के को दर्शन दिए। इसके बाद गणेशजी ने उससे वरदान मांगने के लिए कहा। सवन ने गणेशजी से वरना मांगा की उनकी मां पार्वतीमालिनी, उनके पिता और उनकी जीवन, दृष्टि, वाणी, और जन्म सफल हो।

साथ ही उसने यह भी मांगा की उन्हें स्वर्ग में देवताओं के साथ अमृत पीने की अनुमति मिले और उनका नाम मंगल के रूप में प्रसिद्ध हो, जो सभी तीन लोकों में शुभता का प्रतीक हो। भगवान गणेश ने उसके कहे अनुसार ही वरदान दिया। साथ ही उसे अंगारक नाम दिया और घोषणा की कि यह चतुर्थी अंगारकी चतुर्थी के नाम से जानी जाएगी और जो कोई इस दिन व्रत रखेगा, वह अपने प्रयासों में एक वर्ष तक सफलता प्राप्त करेगा।

इसके बाद मंगल नाम से प्रसिद्ध सवन ने भगवान गणेश की दस हाथ वाली मूर्ति का एक मंदिर बनवाया जिसे उन्होंने मंगलमूर्ति नाम दिया। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति भगवान गणेश के इस रूप की पूजा करता है उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। सवन ने भी अंगारकी चतुर्थी का व्रत रखा और इसके परिणामस्वरूप स्वर्ग और अनंत आनंद प्राप्त किया।

एक अन्य कथा है- एक समय की बात है एक गांव में दो भाई बहन रहते थे। उनमें बहन का हमेशा से नियम था कि वह अपने भाई का चेहरा देखकर ही खाना खाती थी। हर दिन सुबह वह उठती और जल्दी-जल्दी सारा काम करके अपने भाई का मुंह देखने के लिए उसके घर जाया करती थी। एक दिन रास्ते में एक पीपल के नीचे गणेश जी की मूर्ति रखी थी। उसने भगवान के सामने हाथ जोड़कर कहा कि मेरे जैसा अच्छा सुहाग और मेरे जैसा अच्छा पीहर सबको दीजिए। यह कहकर वह आगे बढ़ गई।

जंगल के झाड़ियों के कांटे उसके पैरों में चुभते रहते थे। एक दिन वह अपने भाई के घर पहुंची और भाई का मुंह देख कर बैठ गई, तो उसकी भाभी ने पूछा कि पैरों में क्या हो गया हैं। यह सुनकर उसने भाभी को जवाब दिया कि रास्ते में जंगल के झाड़ियों से गिरे हुए कांटे पांव में चुभ गए हैं। जब वह वापस अपने घर आने लगी तब भाभी ने अपने पति से कहा कि उस रास्ते को साफ करवा दीजिए, आपकी बहन के पांव में बहुत सारे कांटा चुभ गए हैं। भाई ने तब कुल्हाड़ी लेकर सारी झाड़ियों को काटकर रास्ता साफ कर दिया। जिससे गणेश जी का स्थान भी वहां से हट गया। यह देखकर भगवान क्रोधित हो गए और उसके भाई के प्राण ले लिए।

जब लोग अंतिम संस्कार के लिए उसके भाई को ले जा रहे थे, तब उसकी भाभी रोते हुए लोगों से कहने लगी कि थोड़ी देर रुक जाओ, उनकी बहन आने वाली है। वह अपने भाई का मुंह देखे बिना नहीं रह सकती है। उसका यह नियम है। तब लोगों ने कहा आज तो देख लेगी पर कल कैसे देखेगी। हर दिन की तरह बहन अपने भाई का मुंह देखने के लिए जंगल में निकली। तब जंगल में उसने देखा कि सारा रास्ता साफ किया हुआ है। जब वह आगे बढ़ी तो उसने देखा कि भगवान गणेश को भी वहां से हटा दिया गया हैं। तब उसने भाई के पास जाने से पहले गणेश जी को एक अच्छे स्थान पर रखकर उन्हें फिर से एक स्थान दिया और हाथ जोड़कर बोली भगवान मेरे जैसा अच्छा सुहाग और मेरे जैसा अच्छा पीहर सबको देना और यह बोलकर आगे निकल गई।

तब भगवान श्रीगणेश ने उसे आवाज लगाई और कहा कि बेटी इस खेजड़ी की सात पत्तियां लेकर जा और उसे कच्चे दूध में घोलकर भाई के ऊपर छींटें मार देना वह फिर से जीवित हो जाएगा। यह सुनकर जब बहन पीछे मुड़ी तो वहां कोई नहीं था। फिर वह उसने सोचा कि ठीक है, जैसा सुना वैसा कर लेती हूं। वह सात खेजड़ी की पत्तियां लेकर अपने भाई के घर पहुंची। उसने देखा वहां कई लोग बैठे हुए हैं, भाभी बैठी रो रही और भाई की लाश रखी हैं। तब उसने उन पत्तियों को बताए हुए नियम के जैसे अपने भाई के ऊपर इस्तेमाल किया। उसका भाई फिर से जीवित हो गया।

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