अपने लाइफ पार्टनर के प्रति वफादार होते हैं पुनर्वसु नक्षत्र में पैदा हुए लोग
punarvasu nakshatra: व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा के इस नक्षत्र में स्थित होने पर पुनर्वसु को उसका जन्म नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाले जातक बुद्धिमान रचनात्मक, अनुकूल, आध्यात्मिक जगत से जुड़ाव रखते हैं।
पुनर्वसु नक्षत्र को पुनरावृत्ति या प्रकाश की वापसी के रूप में जाना जाता है। बृहस्पति द्वारा शासित और तरकश के प्रतीकवाला यह नक्षत्र 20 डिग्री मिथुन राशि से 3 डिग्री 20 मिनट कर्क राशि तक फैला है। डॉ संजीव कुमार शर्मा से जानें इस नक्षत्र के बारे में व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा के इस नक्षत्र में स्थित होने पर पुनर्वसु को उसका जन्म नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाले जातक बुद्धिमान रचनात्मक, अनुकूल, आध्यात्मिक जगत से जुड़ाव रखते हैं। इस नक्षत्र पर बृहस्पति का प्रभाव सौभाग्य और ज्ञान लाता है। यह आध्यात्मिक विकास और सांसारिकता का प्रतीक है। इस नक्षत्र के चार चरणों के अलग-अलग प्रभाव होते हैं।
प्रथम चरण में यह मंगल द्वारा शासित होता है। इस चरण में जन्म लेनेवाले व्यक्ति उग्र, ऊर्जावान और उत्साहवाले होते हैं।
द्वितीय चरण शुक्र द्वारा शासित होता है। इस चरण में जन्म लेनेवाले व्यक्ति मजबूत, अंतर्ज्ञान और रचनात्मकता के प्रतीक होते हैं।
तृतीय चरण बुध द्वारा शासित होता है। इस चरण में जन्म लेनेवाले व्यक्ति धन, प्रसिद्धि और अधिकार के रूप में अच्छी सफलता पानेवाले होते हैं।
चतुर्थ चरण चंद्रमा द्वारा शासित होता है। चंद्रमा के प्रभाव के कारण ऐसे जातक भावुक होते हैं।
इस नक्षत्र वाले व्यक्ति रचनात्मक स्वभाववाले होते हैं। कला-संगीत के प्रति स्वाभाविक रुचि होती है। ऐसे व्यक्ति मीडिया, फैशन और मनोरंजन उद्योग में भी सफलता प्राप्त करते हैं।
इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति को अंकों की गणना करने की स्वाभाविक योग्यता होती है। यह व्यक्ति लेखन आदि क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से इस नक्षत्र में जन्मे लोग आमतौर पर स्वस्थ और तंदुरुस्त रहते हैं।
धन प्रबंधन की अच्छी समझ के चलते अकसर ठोस आर्थिक निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं। अपने संबंधों में यह व्यक्ति अपने पार्टनर के प्रति अत्यंत वफादार और समर्पित होते हैं और अपनी प्रतिबद्धताओं को गंभीरता से लेते हैं।
इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाले व्यक्तियों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए कुछ उपाय हैं
पूर्णिमा के दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करें। मंदिर में सफेद फूल, चावल या दही का दान करें।
दाहिने हाथ में चांदी का कड़ा या छल्ला धारण करें। प्रतिदिन 108 बार ओम नम शिवाय मंत्र का जाप करें।
प्रत्येक सोमवार को घी और कपूर का दीपक जलाएं।
अमावस्या के दिन सफेद वस्त्र, दाल और मिठाई का दान करें।
बुधवार और शनिवार को भूखे लोगों को भोजन कराएं।
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