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काल के भय से मुक्त करती है काल भैरव की साधना

  • कालभैरव अष्टकम में आदि शंकराचार्य द्वारा वर्णित शिव के कालभैरव रूप को नग्न, काले, खोपड़ियों की माला से लिपटे, तीन आंखोंवाले, चार हाथों में विनाशक शस्त्रों और सांपों से लिपटे हुए दिखाया गया है।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीTue, 19 Nov 2024 08:16 AM
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कालभैरव अष्टकम में आदि शंकराचार्य द्वारा वर्णित शिव के कालभैरव रूप को नग्न, काले, खोपड़ियों की माला से लिपटे, तीन आंखोंवाले, चार हाथों में विनाशक शस्त्रों और सांपों से लिपटे हुए दिखाया गया है। इस रूप का चित्रण उस तटस्थ, शांत और ध्यानपूर्ण रूप से विरोधाभासी लग सकता है, जिसकी लोग प्राय पूजा करते हैं, लेकिन कालभैरव के साथ एक गहरा प्रतीकात्मक अर्थ जुड़ा हुआ है।

कालभैरव का वाहन श्वान है। यह मृत्यु और समय के देवता हैं। अध्यात्म में ‘मृत्यु’ और ‘समय’ शब्द प्रतीकात्मक हैं। श्वान दो शब्दों ‘शव’ और ‘न’ से मिलकर बना है। वैदिक साहित्य में शव का अर्थ कल भी है और कल भी, और न का अर्थ नहीं भी है। तो श्वान का अर्थ है कुछ ऐसा जो न तो कल है और न ही आनेवाला है, कुछ ऐसा जो केवल अभी, वर्तमान क्षण में है। कालभैरव वह हैं, जो न तो कल हैं और न ही आनेवाला कल। वे हमेशा वर्तमान में मौजूद रहते हैं। साथ ही कालभैरव काशी के स्वामी हैं। इसका एक प्रतीकात्मक अर्थ भी है। तंत्र में काशी को आज्ञा चक्र के रूप में मान्यता दी गई है, जो भौंहों के बीच स्थित है।

कालभैरव का चित्रण यह दर्शाता है कि समय सब कुछ खा जाता है। इस दुनिया में जो कुछ भी मौजूद है, वह समय के साथ नष्ट हो जाएगा। समय से परे कुछ नहीं है। इस संसार में हर वस्तु नाशवान है, केवल समय ही कालातीत है। समय की गति के आगे किसी गति का वश नहीं है।

और समय कहां है? यह अतीत या भविष्य में नहीं है। यह अभी है। जब समय और वर्तमान क्षण का यह अहसास होता है, तो हमारा आज्ञा चक्र (हमारे शरीर में ज्ञान का स्थान) बढ़ जाता है, जो हमारे भीतर कालभैरव की उपस्थिति को दर्शाता है । यह हमें समाधि (ध्यान) की सबसे गहरी अवस्था में ले जाता है, जिसे भैरव अवस्था भी कहा जाता है।

कालभैरव अष्टकम में आदि शंकराचार्य ने कालभैरव की काशी के भगवान के रूप में प्रशंसा की है। उनका वास्तव में आशय आज्ञा चक्र से है, जो वर्तमान क्षण की पूर्ण जागरूकता को दर्शाता है। यह सभी देवताओं द्वारा प्रतिष्ठित है। आदि शंकराचार्य कहते हैं कि वे दिव्य ऊर्जाएं भी आनंद और समाधि की उस अवस्था की लालसा में कालभैरव के चरणों में झुकती हैं। कालभैरव काल के भय से मुक्त करते हैं।

भगवान कालभैरव को भूत संघ नायक के रूप में वर्णित किया गया है। पंच भूतों के स्वामी— जो पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश हैं। वह जीवन में सभी प्रकार की वांछित उत्कृष्टता, वह सभी ज्ञान प्रदान करनेवाले हैं, जो हम चाहते हैं। सीखने और उत्कृष्टता के बीच एक अंतर है और आनंद की यह अवस्था व्यक्ति को सभी वांछित उत्कृष्टता प्रदान करती है। कालभैरव को याद करने से व्यक्ति को वह आनंद प्राप्त होता है, जो समाधि की सबसे गहरी अवस्था में होता है, जहां आप सभी चिंताओं से रहित होते हैं, किसी भी चीज से परेशान नहीं होते।

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