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हरतालिका तीज पर जरूर पढ़ें राजा हिमाचल और मैना की पुत्री से जुड़ी यह कथा

  • हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज व्रत रखा जाता है। इस साल हरतालिका तीज व्रत आज यानी 6 सितंबर को है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला उपवास करती हैं।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तानFri, 6 Sep 2024 05:11 AM
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हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज व्रत रखा जाता है। इस साल हरतालिका तीज व्रत आज यानी 6 सितंबर को है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला उपवास करती हैं। हरतालिका तीज व्रत को कठिन व्रतों में से एक माना गया है। यह दिन भगवान शिव व माता पार्वती को समर्पित माना गया है। मान्यता है कि इस दिन भोलेनाथ व माता पार्वती की पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हरतालिका तीज व्रत में इस कथा का पाठ जरूर करें-

माता पार्वती ने कैलाश पर्वत पर विशाल वट वृक्ष के नीचे भगवान शिव के साथ विराजमान थीं। भगवान शिव और माता पार्वती के साथ बलवान वीरभद्र , भृंगी,श्ऱंगी और न्नदी अपने-अपने पहरों पर सादशिव के दरबार की शोभा बढा रहे थे। इस अवसर पर भगवान शिव से माता पार्वती ने दोनों हाथ जोड़कर प्रश्न किया कि हे प्रभु क्या मैं जान सकती हूं कि मैंने वह कौन-से पुण्य किए थे, जो मैंने आपको पति रूप में प्राप्त किया। आप अंतर्यामी हैं, सबकुछ जानते हैं। आपसे कुछ छिपा नहीं। मुझ दासी पर कृपा कर मुझे विस्तार से सबकुछ बताने की कृपा करें। 

माता पार्वती की ये बातें सुनकर भगवान शंकर ने कहा कि हे महादेवी तुमने अति उत्तम, पुण्य का संग्रह किया था, जिसके प्रताप से मुझे प्राप्त किया है। वह अति गुप्त व्रत है, लेकिन मैं तुम्हें बताता हूं। वह व्रत भादो मास के शुक्ल पक्ष की तीज के नाम से जाना जाता है। यह व्रत श्रेष्ठ है। जो तीज हस्त नक्षत्र के दिन पड़े तो वह बहुत पुण्यदायक मानी जाती है। ऐसा सुनकर माता पार्वती ने कहा कि मैंने यह व्रत कब और कैसे किया था। आप मुझे विस्तार से सबकुछ बताने की कृपा करें। 

भगवान शंकर बोले- हे देवी, भारतवर्ष के उत्तर में हिमाचल श्रेष्ठ पर्वत है, उसके राजा हिमाचल हैं, वहीं तुम भाग्यवती रानी मैना के कोख से पैदा हुईं। तुमने बचपन से ही मेरी अराधना करना शुरू कर दिया था। कुछ उम्र बढने पर तुमने सहेली के साथ जाकर हिमालय की गुफाओं में मुझे पाने के लिए तप किया।

हे देवी तुमने गर्मी में बाहर चट्टानों में आसन लगाकर तप किया, बारिश में बाहर पानी में तप किया, सर्दी में पानी में खड़े होकर मुझे पाने के लिए तप किया। तुमने मुझे प्राप्त करने के लिए बहुत कठोर तप किए। हे देवी इस दौरान तुमने पेड़ों के पत्ते खाएं और तुम्हारा शरीर क्षीण हो गया। तुम्हारी ऐसी हालत देखकर महाराज हिमाचल चिंता में डूब गए। वे तुम्हारे विवाह के लिए चिंता करने लगे। इसी मौके पर नारद देव आए। राजा ने उनका स्वागत किया और उनके आने का कारण पूछा।

तब नारद जी ने कहा राजन मैं भगवान विष्णु की तरफ से आया हूं। मैं चाहता हूं कि आपकी सुंदर कन्या को योग्य वर प्राप्त हो, सो बैकुंठ निवासी भगवान विष्णु ने आपकी कन्या का वरणस्वीकार किया है, क्या आपको स्वीकार है। राजा हिमांचल ने कहा, महाराज मेरा सौभाग्य है जो कि मेरी कन्या को विष्णु जी ने स्वीकार किया। 

भगवान विष्णु से तुम्हारी विवाह की बात सुनकर तुम्हें बहुत दुख हुआ और तुम अपनी सखी के पास पहुंचकर विलाप करने लगी। तुम्हारा विलाप देखकर सखी ने तुम्हारी इच्छा जानकर कहा, देवी मैं तुन्हें ऐसी गुफा में तपस्या के लिए ले चलूंगी जहां महाराज हिमाचल भी न पा सकें। इसके बाद तुम सहेली के साथ हिमालय की गहन गुफाओं में विलीन हो गईं। तब महाराज हिमाचल घबरा गए, और पार्वती को ढ़ंढ़े हुए विलाप करने लगे कि मैंने विष्णु जी को जो वचन दिया है, वो कैसे पूरा हो सकेगा। ऐसा कहकर वो बेहोश हो गए। 

उस समय तुम नदी की बालू का शिवलिंग लाकर विविध फूलों से पूजन करने लगीं। इस दौरान तुमने अन्न और जल के बिना मेरे व्रत को आरंभ किया। उस दिन भाद्र मास की तृतीया शुक्ल पक्ष, हस्त नक्षत्र था। तुम्हारे कठोर तप और पूजा से मेरा सिंहासन हिल उठा और मैने तुम्हें दर्शन दिए। वहां जाकर मैंने तुमसे कहा -हे देवी मैं तुम्हारे व्रत और पूजन से अति प्रसन्न हूं। तुम मुझसे अपनी इच्छा मांग सकती हो। 

हे महादेवी तब तुमने मुझसे कहा कि आप अंतर्यामी है, मेरे मन के भाव आप जानते हैं, आपको मैं अपने पति के रूप में पाना चाहती हूं। ये सुनकर मैंने तुम्हें एवमस्तु इच्छित पूर्ण वरदान दिया और अंतरध्यान हो गया। इसके बाद तुम मूर्ति विसर्जित करने नदी पर गईं जहां नदी तट पर तुम्हारे नगरनिवासी पिता हिमाचल के साथ मिल गए। वे तुमसे मिलते ही रोने लगे। और घर चलने का आग्रह किया। तुमने कहा कि पिताजी आपने मेरा विवाह भगवान विष्णु जी के साथ स्वीकार किया, इस कारण में वन में रहकर अपने प्राण त्याग दूंगी। तब वे बोले, मैं तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु के साथ कदापि नहीं करूंगा। तुम्हारा विवाह सदाशिव के साथ करूंगा। इसके बाद हमारा विवाह हुआ।

व्रत कथा से संकलित

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