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हरतालिका तीज पर 5 प्रहर की होती है पूजा, मिट्टी के बनाए जाते हैं शिवलिंग

  • पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए सुहागिन महिलाएं छह सितम्बर (शुक्रवार) को हरतालिका तीज का व्रत रखेंगी। इस वर्ष हरतालिका तीज पर रवि योग, शुक्ल योग के साथ हस्त नक्षत्र व चित्रा नक्षत्र का संयोग बन रहा है।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तानThu, 5 Sep 2024 09:58 AM
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पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए सुहागिन महिलाएं छह सितम्बर (शुक्रवार) को हरतालिका तीज का व्रत रखेंगी। इस वर्ष हरतालिका तीज पर रवि योग, शुक्ल योग के साथ हस्त नक्षत्र व चित्रा नक्षत्र का संयोग बन रहा है। जो बहुत शुभ माना जा रहा है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रख कर माता पार्वती और भगवान शिव की विधिवत पूजा करती हैं। पूरे दिन पूजा ध्यान करने के बाद प्रदोष काल में पूजा करती है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है। तृतीया तिथि 5 सितंबर को दोपहर 12.21 बजे से शुरू हो रही है, जो 6 सितंबर को दोपहर 3.01 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के आधार पर हरतालिका तीज छह सितंबर शुक्रवार को मनाई जाएगी।

मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए रखा था व्रत

ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को पहली बार मां पार्वती ने भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिये रखा था। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए और कुंवारी कन्याएं मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं।

हरतालिका तीज पर 5 प्रहर की होती है पूजा, मिट्टी के बनाए जाते हैं शिवलिंग

हरतालिका तीज पर पांच प्रहर यानी दिनभर में पांच बार पूजा-अर्चना की जाती है। मिट्टी के शिवलिंग बनाए जाते हैं। तीज के बाद चतुर्थी की सुबह मिट्टी से बने शिव जी, पार्वती जी और गणेश जी की पूजा करती हैं। पूजा के बाद नदी-तालाब या किसी अन्य जलस्रोत में इन मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। इस पूजा के बाद दान-पुण्य किया जाता है और फिर महिलाएं अन्न-जल ग्रहण करती हैं।

हरतालिका तीज से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

तीज यानी तृतीया तिथि की स्वामी देवी पार्वती हैं। हरतालिका तीज व्रत के संबंध में पौराणिक मान्यता है कि सबसे पहले देवी पार्वती ने ही ये व्रत किया था। पार्वती शिव जी को पति रूप में पाना चाहती थीं और इसी कामना को पूरा करने के लिए देवी ने हरतालिका तीज से कठोर तप शुरू किया। देवी के तप से शिव जी प्रसन्न हुए और उन्हें देवी को मनचाहा वर दिया था। इसके बाद पार्वती और शिव जी का विवाह हुआ था।

 

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