Ganesh Ji ki Aarti : गणेश जी की आरती- जय गणेश, जय गणेश देवा, माता जा की पार्वती, पिता महादेवा
- प्रेम, सम्मान और त्याग का प्रतीक करवा चौथ का पर्व आज श्रद्धा, उल्लास से मनाया जा रहा है। इस दिन महिलाएं पति के दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रहती हैं। इस पावन दिन गणपति की आरती जरूर कर लें। आगे पढ़ें भगवान श्री गणेश की आरती-
प्रेम, सम्मान और त्याग का प्रतीक करवा चौथ का पर्व आज श्रद्धा, उल्लास से मनाया जा रहा है। इस दिन महिलाएं पति के दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रहती हैं। शाम को व्रती महिलाएं सोलह शृंगार कर करवा माता और भगवान गणपति की पूजा-अर्चना करती हैं। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। साथ ही चलनी में पति का रूप निहार कर व्रत का पारण करती हैं। इस दिन भगवान गणेश की पूजा- अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। भगवान गणेश प्रथम पूजनीय देव हैं। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी की पूजा से ही होती है। भगवान गणेश को प्रसन्न करना काफी आसान होता है। अपने भक्तों से भगवान गणेश बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इस पावन दिन गणपति की आरती जरूर कर लें। गणपति की आरती के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। आगे पढ़ें भगवान श्री गणेश की आरती-
भगवान श्री गणेश की आरती-
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।
॥ श्री गणपतीची आरती ॥
सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची।
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।
सर्वांगी सुन्दर उटि शेंदुराची।
कण्ठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती॥
रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा।
चन्दनाची उटि कुंकुमकेशरा।
हिरे जड़ित मुकुट शोभतो बरा।
रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया॥
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती॥
लम्बोदर पीताम्बर फणिवर बन्धना।
सरळ सोण्ड वक्रतुण्ड त्रिनयना।
दास रामाचा वाट पाहे सदना।
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवरवन्दना॥
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती॥
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