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Pradosh: 07:12 मिनट से सावन के पहले प्रदोष व्रत का पूजा मुहूर्त, नोट करें पूजा-विधि, शिव आरती, उपाय

  • Sawan Pradosh fast : 1 अगस्त के दिन सावन के गुरु प्रदोष का व्रत रखा जाएगा। मान्यता है सावन के पहले प्रदोष का व्रत रखने और प्रदोष काल में शिव परिवार की पूजा-उपासना करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है।

Shrishti Chaubey नई दिल्ली, हिन्दुस्तान संवाददाताThu, 1 Aug 2024 07:44 AM
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 Sawan Pradosh Vrat: सावन महीने का पहला प्रदोष व्रत 1 अगस्त, गुरुवार को रखा जाएगा। शिव जी को समर्पित है श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष का गुरु प्रदोष व्रत। मान्यता है सावन प्रदोष व्रत रखने और प्रदोष काल में शिव परिवार की पूजा करने से सुख-संपदा में वृद्धि होती है। गुरुवार के दिन पड़ने के कारण यह प्रदोष व्रत गुरु प्रदोष व्रत कहलाएगा। आइए जानते हैं सावन के पहले प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि, शिव मंत्र, उपाय और आरती-

सावन के पहले प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

  • त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 01, 2024 को 03:28 पी एम बजे
  • त्रयोदशी तिथि समाप्त - अगस्त 02, 2024 को 03:26 पी एम बजे
  • प्रदोष पूजा मुहूर्त - 07:12 पी एम से 09:18 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 06 मिनट्स
  • दिन का प्रदोष समय - 07:12 पी एम से 09:18 पी एम

मंत्र- ॐ नमः शिवाय, श्री शिवाय नमस्तुभ्यं

सावन प्रदोष पूजा-विधि

स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण कर लें। शिव परिवार सहित सभी देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करें। अगर व्रत रखना है तो हाथ में पवित्र जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत रखने का संकल्प लें। फिर संध्या के समय घर के मंदिर में गोधूलि बेला में दीपक जलाएं। फिर शिव मंदिर या घर में भगवान शिव का अभिषेक करें और शिव परिवार की विधिवत पूजा-अर्चना करें। अब सावन गुरु प्रदोष व्रत की कथा सुनें। फिर घी के दीपक से पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव की आरती करें। अंत में ॐ नमः शिवाय का मंत्र-जाप करें। अंत में क्षमा प्रार्थना भी करें।

सावन के पहले प्रदोष का उपाय

शिव जी की असीम कृपा पाने के लिए पूजन के दौरान शिवलिंग पर चढ़ाएं ये चीजें-

1. घी

2. दही

3. फूल

4. फल

5. अक्षत

6. बेलपत्र

7. धतूरा

8. भांग

9. शहद

10. गंगाजल

11. सफेद चंदन

12. काला तिल

13. कच्चा दूध

14. हरी मूंग दाल

15. शमी का पत्ता

शिव जी की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।

हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।

सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।

पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।

भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।

शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥

ॐ जय शिव ओंकारा॥

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