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छठ महापर्व का दूसरा दिन आज: खरना क्यों मनाया जाता है? जानें कब से शुरू होता है छठ व्रत

  • Chhath Puja Second Day 2024: आज छठ महापर्व का दूसरा दिन है। 6 नवंबर को खरना मनाया जाएगा। इसके बाद गुरुवार को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्ध्य एवं शुक्रवार को उदयीमान भगवान सूर्य को अंतिम अर्ध्य देने के साथ ही छठ पूजा संपन्न होगी।

Saumya Tiwari लाइव हिन्दुस्तानWed, 6 Nov 2024 07:03 AM
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Chhath Puja Kharna Today: महापर्व के दूसरे दिन आज बुधवार को खरना है, जो लोहंडा के नाम से भी जाना जाता है।‌‌ यह महापर्व के महाप्रसाद पाने का दिन है। इस दिन व्रती दिनभर उपवास रखती हैं और सायंकाल पूजा के बाद नैवेद्य ग्रहण कर अपना व्रत खोलती हैं। खरना के दिन छठ माता को सूर्यास्त के बाद‌ दूध-चावल से‌ बनी खीर-गुड़‌ का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।‌ खरना के बाद ही छठ-व्रतियों का 36 घंटे से ज्यादा समय ‌का अखंड उपवास आरंभ हो जाता है।

खरना क्यों मनाया जाता है- खरना के प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही छठ व्रत प्रारंभ होता है। खरना का विशेष महत्व है। यह दिन विशेष रूप से संयम, भक्ति व सच्चे भाव से पूजा करने का अवसर देता है। मान्यता है कि इसे छठ मैया व सूर्य भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

खरना पूजा मुहूर्त- सूर्योदय- सुबह 06 बजकर 45 मिनट पर।

सूर्यास्त- शाम 05 बजकर 31 मिनट पर।

रवि योग- 08:56 ए एम से 11:00 ए एम

सायाह्न सन्ध्या- 05:31 पी एम से 06:50 पी एम

चूल्हे पर बनाते हैं खीर-

खरना के दिन आम की लकड़ी से मिट्टी के चूल्हे पर खीर बनाई जाती है। परंपरा अनुसार खीर बनाने से पूर्व विधिपूर्वक चूल्हे की भी पूजा की जाती है। इसके बाद जिस बर्तन में प्रसाद बनता है, उसकी भी पूजा की जाती है। इसके बाद लकड़ी से चूल्हा जलाकर खीर बनाते हैं। चूल्हे के पास ही कलश स्थापित कर फल फूल इत्यादि से पूजा की जाती है। मिट्टी की ढकनी में छठी मैया को भोग लगाया जाता है। खरना के अगले दिन 7 नवंबर गुरुवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

तीसरे दिन देते हैं अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य-

तीसरा दिन 7 नवंबर गुरुवार को निर्जल उपवास का होता है, जिसमें व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार 7 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का समय सूर्यास्त पर 5:29 बजे होगा। व्रती महिलाएं नदी या तालाब के किनारे जाकर पूजा करती हैं और अर्घ्य के बाद ठेकुआ, लडुआ जैसे प्रसाद को भगवान सूर्य और माता षष्ठी देवी को अर्पित करती हैं। अंतिम दिन 8 नवंबर, शुक्रवार को सूर्योदय के समय अर्घ्य देकर माता षष्ठी देवी को विदाई दी जाएगी। यह महापर्व आनंद योग में समाप्त होगा।

इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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