बुद्ध पूर्णिमा: सिद्धार्थ से बुद्धत्व तक की यात्रा
Buddha Purnima: जन्म, संबोधि और निर्वाण- बुद्ध के जीवन की ये तीन महत्वपूर्ण घटनाएं वैशाख पूर्णिमा के दिन हुईं। यह सिद्धार्थ के बुद्धत्व तक की यात्रा है, जिसमें उन्होंने जन-कल्याण के लिए महानिर्वाण को भी त्याग दिया।

Buddha Purnima, बुद्ध पूर्णिमा: जन्म, संबोधि और निर्वाण- बुद्ध के जीवन की ये तीन महत्वपूर्ण घटनाएं वैशाख पूर्णिमा के दिन हुईं। यह सिद्धार्थ के बुद्धत्व तक की यात्रा है, जिसमें उन्होंने जन-कल्याण के लिए महानिर्वाण को भी त्याग दिया। बुद्ध का हृदय करुणाशील था, जैसे उनके हृदय में करुणा का सागर हिलोरें ले रहा हो। यह करुणा ही उनके सूत्रों को मानवता के कल्याण का प्रेरक बनाती है। उनका उद्देश्य केवल बाहरी दुनिया को बदलना नहीं था, बल्कि अंदर की स्थिति को बाहरी जगत से एकीकृत करना था।
बुद्ध का एक प्रसिद्ध धम्मसूत्र है- मनुष्य का जीवित रहना भी दुर्लभ है, सद्धर्म का श्रवण करना भी दुर्लभ है और बुद्धों का उत्पन्न होना भी दुर्लभ है। मनुष्य होना इतना आसान नहीं है, इतना सरल नहीं है। हालांकि हमें यही लगता है कि डेढ़ अरब से अधिक जनसंख्या अकेले भारत की ही है। इसका मतलब मानव जन्म सुलभ है, तभी तो सब पैदा हो गए। पर बुद्ध ने कुछ सोच-समझकर ही ऐसा कहा होगा क्योंकि बुद्ध ऐसे व्यक्ति हैं, जो सिर्फ बोलने के लिए कोई बात नहीं बोलते, बल्कि विज्ञान, तर्क, बुद्धि, विवेक आदि का उपयोग करने के बाद ही मुख से वचन निकालते हैं। उनके कहने का अभिप्राय यह है कि सिर्फ मनुष्य का शरीर पाया तो क्या पाया, अगर मनुष्यता नहीं पाई तो मनुष्य कहां से हुआ! मनुष्य शरीर कीमती है, निश्चित ही कीमती है, लेकिन मनुष्य का शरीर मिल गया, अब और कुछ नहीं चाहिए; ऐसा नहीं है। जैसे गुलाब का बीज तुम्हारे हाथ में हो, लेकिन उस बीज को जब तक तुम धरती में नहीं डालो और वह पौधा न बने, उसमें फूल न लगें, तब तक आप उस बीज से निकलने वाले फूलों की खुशबू नहीं ले सकते। तुम खाली बीज को सूंघो तो क्या खुशबू आएगी? इसी तरह से मनुष्य का शरीर भी एक बीज की तरह है। इस बीज को अगर साधना की भूमि में डाल दिया, ज्ञान के जल से सींच दिया, तप के द्वारा इसको पकने दिया तो फिर मनुष्यता का जन्म हो जाएगा। अन्यथा तो बीज रूप से पैदा हुए और बीज-रूप से मर गए; फूल बन ही नहीं पाए।
बुद्ध पूर्णिमा वही दिन है, जब बुद्ध का जन्म हुआ था। एक बड़ी अद्भुत बात है कि पूर्णमासी के दिन बुद्ध का जन्म हुआ और पूर्णमासी के ही दिन इनको संबोधि भी प्राप्त हुई, फिर इसी पूर्णमासी पर ही इनका निर्वाण भी हुआ। यह एक बड़ी विलक्षण बात है कि जिस दिन जन्म हुआ, उसी दिन ज्ञान भी और पूर्णमासी को ही निर्वाण को प्राप्त हुए। मेरी दृष्टि में बुद्ध पूर्णिमा का दिन बहुत विशेष है। भले ही बुद्ध आज हमारे बीच नहीं हैं, भले ही तथागत शरीर से श्वास लेते हुए, चलते-फिरते हुए दिखते नहीं हैं, पच्चीस सौ वर्षों का अंतर पड़ गया है। पच्चीस सौ साल पहले बुद्ध चले गए, विदा हो गए, लेकिन इसके बावजूद आज के दिन बुद्धत्व की ऊर्जा का विस्फोट और वितरण अब भी होता है।
पहले राजा-महाराजा के जन्म दिन के अवसर पर कई लोगों की फांसी तक माफ हो जाती थी, उपहार दिए जाते थे। बुद्ध तो सम्राटों के भी सम्राट थे, राजाओं के भी राजा थे। बुद्ध पूर्णिमा का दिन सिर्फ उनका जन्मोत्सव ही नहीं, उनका मरणोत्सव भी है, उनका ज्ञानोत्सव भी है और उनका संबोधि उत्सव भी है।
बुद्ध के सूत्रों में ही एक सूत्र है, जिसमें आपने कहा कि बुद्ध की स्थिति से तो देवता भी ईर्ष्या करते हैं, संबोधि देवताओं को भी उपलब्ध नहीं है।
उनकी संबोधि से जुड़ी एक घटना है- कहा जाता है कि बुद्ध इतने गहरे लीन हुए कि सब देवता घबराए कि अरे! इतनी मुश्किल से तो संबोधि मिलती है और अगर यह लीन हो जाएंगे तो विश्व का कल्याण कैसे होगा? सब देवता उपस्थित हुए और आकर विनती करते हैं कि हे बुद्धदेव! आप लीन न होइए, आप जाग्रत रहिए और जो कुछ आपको मिला है, उस ज्ञान को सारे विश्व को दीजिए। देवताओं की प्रार्थना सुनकर बुद्ध ने कहा कि जिसे खोजना होगा, वह खोज ही लेगा। जैसे मैंने बिना किसी गुरु के खोज लिया, ऐसे ही दूसरे भी खोज लेंगे। फिर देवों ने कहा कि सब बुद्ध नहीं हैं, सब सिद्धार्थ नहीं हैं, इसलिए हे बुद्ध! आप लीन न होइए, आप अभी निर्वाण में मत जाइए। अंततः देवों की प्रार्थना को बुद्ध ने स्वीकार किया। कहा जाता है कि देवता तो अदृश्य हो गए और बुद्ध ने अपने दायें हाथ से धरती को स्पर्श किया और कहा- हे धरती! तू इस बात की साक्षी रहना कि बुद्ध ने महानिर्वाण को अस्वीकार किया, ताकि जगत का कल्याण हो सके।
आज भी अगर कोई चाहे तो अपने ध्यानस्थ मन के साथ बुद्ध से जुड़ सकता है, क्योंकि बुद्ध ने कहा था कि मैं शरीर तो छोड़ रहा हूं, लेकिन मेरे शरीर के बाद होने वाले साधकों के लिए, उनकी सहायता करने के लिए मैं रुका रहूंगा। इसलिए बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर मौन रहें, ध्यान करें, एकाग्रचित्त हों, अपने चित्त का शोध करें, तप करें, अपने भीतर मैं बुद्धत्व को प्राप्त हो जाऊं, मुझको परम ज्ञान उपलब्ध हो जाए, यह प्रार्थना करें।