17 नवंबर को बंद होंगे बदरीनाथ के कपाट, पढ़ें तीर्थ से जुड़ी रोचक बातें
- बदरीनाथ धाम भारत के चार धामों में से एक है। बदरीनाथ मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। इसे बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में बदरीनाथ धाम स्थित है।
बदरीनाथ धाम भारत के चार धामों में से एक है। बदरीनाथ मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। इसे बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में बदरीनाथ धाम स्थित है। बदरीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है। इन पर्वतों को नर नारायण पर्वत कहा जाता है। कहते हैं कि यहां भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अपने अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्रीकृष्ण के रूप में पैदा हुए थे। बदरीनाथ धाम के कपाट रविवार 17 नवंबर रात्रि 9 बजकर 7 मिनट पर शीतकाल हेतु बंद हो जायेंगे। विजय दशमी के पर्व पर बदरीनाथ मंदिर परिसर मे बदरीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल ने बदरीनाथ के रावल अमरनाथ नम्बूदरी के सानिध्य में पंचाग अध्ययन के बाद इस वर्ष के यात्रा अवधि में बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने की घोषणा की। कहा जाता है कि 6 महीने तक बंद कपाट के अंदर देवता यहां पूजा करते हैं। यहां एक दीपक है जिसे देवता ही जलाए रखते हैं।बदरीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर में जलने वाले दीपक का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं, इस तीर्थ से जुड़ी रोचक बातें…
- अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में बदरीनाथ धाम स्थित है। इस धाम के बारे में कहा जाता है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी' यानी जो व्यक्ति बदरीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता है।
- शास्त्रों में बदरीनाथ को दूसरा बैकुण्ठ बताया है। एक बैकुण्ठ क्षीर सागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं। दूसरा भगवान विष्णु का निवास बदरीनाथ बताया गया है।
- इस धाम के बारे में कहा जाता है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था लेकिन भगवान विष्णु ने इसे भगवान शिव से मांग लिया था।
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