Amla navami Puja Vidhi 2024: आंवला नवमी पर कैसे की जाती है पूजा? ज्योतिर्विद से जानें संपूर्ण विधि
- Amla navami ki puja vidhi: हिंदू धर्म में आंवला नवमी का पर्व बहुत खास माना गया है। इसदिन भगवान विष्णु व आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान है। जानें आंवला नवमी की पूजा विधि-
Amla Navami Puja Vidhi 2024: हर वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर आंवला नवमी का पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल आंवला है। आंवले के वृक्ष में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। इस साल आंवला नवमी 10 नवंबर 2024, रविवार को है। आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु व आंवला के वृक्ष की विधिवत पूजा की जाती है। ज्योतिषाचार्य पंडित दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली से जानें आंवला नवमी की सरल विधि-
आंवला नवमी पूजा विधि-
1. इस दिन प्रात काल स्नान आदि से निवृत्त होकर घी का दीपक जलाकर आंवले के वृक्ष के नीचे व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
2. भगवान गणपति के आराधना के बाद अपने इष्ट देव की आराधना करना चाहिए।
3. उसके बाद श्री हरि विष्णु माता लक्ष्मी का ध्यान करना चाहिए। उसके बाद
4. आंवले की जड़ को शुद्ध जल से स्नान करने के बाद दूध अर्पित करना चाहिए।
5. इसके बाद अक्षत, पुष्प, चंदन से पूजा-अर्चना कर और पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बांधकर कपूर, बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए तथा इसकी कथा सुनना चाहिए।
6. भगवान विष्णु का ध्यान एवं पूजन करना चाहिए। श्री हरि विष्णु तथा माता लक्ष्मी की भी विशेष पूजन अर्चन करना चाहिए अर्थात षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।
7. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः इस मंत्र का यथा शक्ति जप करना चाहिए।
8. पूजा-अर्चना के बाद बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान आदि का भोग लगाया जाता है।
9. अक्षय नवमी के दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए अन्य वस्त्र तथा कंबल आदि दान करना चाहिए ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए पुण्य कल का अनंत फल प्राप्त होता है। आंवले के वृक्ष के नीचे पितरों का तर्पण भी किया जाना श्रेष्ठ एवं सफल दायक होता है।
10. इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं।
11. कई धर्म प्रेमी तो आंवला पूजन के बाद वृक्ष की छांव में ब्राह्मण भोज भी कराते है तथा स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करते है।
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