Amla Akshaya Navami Vrat Katha : आंवला या अक्षय नवमी पर पढ़ें ये व्रत कथा
- कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि यानी आज 10 नवंबर, 2024 को अक्षय नवमी का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाने व ग्रहण करने का विधान है।
Amla Akshaya Navami Vrat Katha : कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि यानी आज 10 नवंबर, 2024 को अक्षय नवमी का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाने व ग्रहण करने का विधान है। इसलिए इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है। इस अवसर पर भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा की जाती है। द्वापर युग का आरंभ अक्षय नवमी से माना गया है। पुराणों में अक्षय नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन आंवले के नीचे महिलाएं खीर, पूड़ी और मिष्ठान बनाती हैं और परिवार के लोग एक साथ बैठकर ग्रहण करते हैं। आंवला नवमी के पावन दिन व्रत कथा को पढ़ने या सुनने का भी विशेष महत्व होता है। आगे पढ़ें आंवला नवमी व्रत कथा-
आंवला नवमी की कथा
काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया। परंतु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी। इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। इसलिए तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है। वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवले के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी। जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवले वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोग मुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।
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