बिहार चुनाव: दो दशक में पहली बार जदयू से ज्यादा सीटें जीत रही भाजपा, क्या बदलेगा नीतीश का रुतबा
बिहार चुनाव के रुझान बता रहे हैं कि एनडीए की फिर से सरकार बन रही है। लेकिन दो दशक में पहली बार बीजेपी को जदयू से ज्यादा सीटें मिल रही हैं। बीस साल में पहली बार नीतीश...
बिहार चुनाव के रुझान बता रहे हैं कि एनडीए की फिर से सरकार बन रही है। लेकिन दो दशक में पहली बार बीजेपी को जदयू से ज्यादा सीटें मिल रही हैं। बीस साल में पहली बार नीतीश कुमार का कद कमजोर हो रहा है। भाजपा को राज्य में पिछले चुनाव से ज्यादा सीटें मिलती दिख रही हैं। रुझानों में अगर ज्यादा उलटफेर न हुआ तो भाजपा 70 से 75 सीटों के बीच रह सकती है। 2015 में उसे 53 सीटें मिली थीं। जदयू को 45 से 50 सीटें मिल सकती हैं। उसे करीब 20 से 25 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है।
ऐसे में माना जा रहा है कि बिहार में भाजपा और जदयू की भूमिका और रुतबा दोनों बदलेगा। जदयू अब तक बिहार में भाजपा के बड़े भाई की भूमिका में होती थी। सीट बंटवारे में भी यह दिखता रहा है।
2000 में नीतीश कुमार भाजपा के समर्थन से पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने लेकिन बहुमत का आंकड़ा नहीं होने से सिर्फ 7 दिन पद पर रह सके। 2005 में 13वीं विधानसभा के लिए चुनाव हुए। एनडीए 92 सीटें मिलीं। भाजपा को 37 और जेडीयू को 55 सीटें मिलीं। किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो राष्ट्रपति शासन लगा। छह महीने बाद ही राज्य में फिर चुनाव हुए। एनडीए को 143 सीटें मिलीं। जदयू के 88 और भाजपा के 55 विधायक जीतकर आए। नीतीश मुख्यमंत्री बने।
2010 में एनडीए को 243 में से 206 सीटों पर प्रचंड जीत मिली। इस बार जदयू को 115 और भाजपा को 91 सीटें मिलीं। नीतीश का रुतबा और कद दोनों बढ़ा। यहीं से जदयू राज्य में खुद को भाजपा का बड़ा भाई बताने लगी। इसी का असर हुआ कि 2014 आम चुनाव से ठीक पहले जदयू मोदी की वजह से एनडीए से अलग हो गई।
2015 में जदयू और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। इसमें जदयू-राजद-कांग्रेस के महागठबंधन को 126 सीटें मिलीं। इसमें जदयू की 71 और राजद की 80 सीटें थीं। भाजपा को 53 सीटें मिलीं थीं। पर महागठबंधन महज तीन साल में टूट गया।
इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा और जदयू के बीच 50-50 फार्मूले पर चुनाव लड़ा। जदयू 122 सीटों पर और भाजपा 121 सीटों पर लड़ी। इसमें इनके छोटे सहयोगी भी शामिल रहे। इससे पहले हर चुनाव में जदयू खुद को भाजपा का बड़ा भाई बताकर ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ती रही थी।
2010 में भाजपा सबसे बढ़िया औसत रहा
2010 के चुनाव में भाजपा-जदयू सहयोगी थे। इसमें भी भाजपा, जदयू से कम सीटों पर चुनाव लड़ी थी, पर जीतने का औसत बेहतर था। भाजपा 102 सीटों पर चुनाव लड़ी और 91 जीती, जबकि जदयू 141 सीटों पर लड़ी और 115 जीत ले गई। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है।
लोकसभा चुनावों में अलग रहा फार्मूला
2004 में जदयू और भाजपा के बीच सीट बंटवारे का फॉर्मूला 70-30 का था। जेडीयू ने 26 और भाजपा ने 14 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसमें से जेडीयू को 6 और भाजपा को महज 2 सीटों पर जीत मिली थी। 2009 में जदयू 25 और भाजपा 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था। नीतीश को 20 पर जीत मिली थी और भाजपा 15 पर लड़कर 12 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।
2014 आम चुनाव में जदयू 40 में से सिर्फ 2 सीटें जीत सकी थी
2014 में नीतीश कुमार एनडीए के साथ नहीं, बल्कि अकेले लड़े थे। एनडीए में भाजपा, रालोसपा, लोजपा शामिल थीं। भाजपा 29, लोजपा 7 और रालोसपा 4 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जबकि जदयू ने अकेले 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था, इसमें से सिर्फ 2 पर उसे जीत मिली थी। भाजपा 29 में 22 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी।
2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा का रिकॉर्ड जदयू से बेहतर था
2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू ने 17-17 सीटों पर और लोजपा ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा। भाजपा ने अपने कोटे की सभी 17 सीटों पर जीत हासिल की। जदयू को 17 में से 16 सीटों पर जीत मिली। वहीं, लोजपा भी ने अपने कोटे की सभी 6 सीटें जीत ली थीं।
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